शिव सी शांति चाहिए तो कण्ठ मे ज़हर, गले मे विषेला साँप, बगल मे दुर्गा की आग, जटा मे रौद्र गँगा क्या तुम्हें अब भी लगता हे शांति सस्ती है?
ये अकेला मन, ये ख़ाली पन्ने कुछ बारिश की बुँदे, और चाय की चुस्की शायद इसे ही शुकून कहते है ।। ये कूदते ख़याल, ये भटकता दिमाग और इनको चुपचाप निहारता ये स्वभाव शायद इसे ही शुकून .....!! ऊँची पहाड़ी मंजिलें, ये टेढ़ी मेड़ी राहे और इसमें धीरे धीरे बढ़ते ये कदम शायद इसे ही .............!! यु घबराना, फिर सांसो का चढ़ जाना और मन का सब समज पाना शायद ..................!!